हाथी और भालू की कहानी | Hathi Aur Bhalu Ki Kahani
हाथी और भालू की कहानी (Hathi Aur Bhalu Ki Kahani) की कहानी शेयर कर रहे हैं, जिसमें एक धूर्त मगरमच्छ भी है। एक हाथी मुसीबत में फंसे मगरमच्छ की सहायता करता है। मगरमच्छ उसके साथ क्या करता है? भालू उसकी कैसे सहायता करता है?
कहानी शुरू करते है..
एक जंगल में एक हाथी रहता था। वह बड़ा दयालु था। मुसीबत के समय वह सदा सबकी सहायता किया करता था। उसके इस स्वभाव है कारण जंगल के सभी जानवर उससे बहुत प्रेम करते थे।
एक दिन हाथी को प्यास लगी और वह पानी पीने नदी पर गया। वहाँ उसने देखा कि नदी के किनारे एक बड़े से पत्थर के नीचे एक मगरमच्छ दबा हुआ है और दर्द से कराह रहा है।
हाथी ने उससे पूछा, “मगरमच्छ भाई! ये क्या हो गया? तुम इस पत्थर के नीचे कैसे दब गये?”
मगरमच्छ ने कराहते हुए उत्तर दिया, “क्या बताऊं हाथी दादा! मैं खाना खाकर नदी किनारे आराम कर रहा था। जाने कैसे उस बड़ी चट्टान का ये टुकड़ा टूटकर मुझ पर आ गिरा। बहुत दर्द हो रहा है। मेरी मदद करो। इस पत्थर को हटा दो। मैं ज़िन्दगी भर तुम्हारा अहसानमंद रहूंगा।”
हाथी को उस पर दया आ गई। लेकिन उसे डर भी था कि कहीं मगरमच्छ उस पर हमला न कर दे। इसलिए उसने पूछा, “देखो मगरमच्छ भाई! मैं तुम्हारी मदद तो कर दूं, लेकिन वादा करो कि तुम मुझ पर हमला नहीं करोगे।”
“मैं वादा करता हूँ।” मगरमच्छ बोला।
हाथी मगरमच्छ के पास गया और उसकी पीठ से भारी पत्थर हटा दिया। लेकिन पत्थर के हटते ही धूर्त मगरमच्छ ने हाथी का पैर अपने जबड़े में दबा लिया।
हाथी कराह उठा और बोला, “ये क्या मगरमच्छ भाई? ये तो धोखा है। तुमने तो वादा किया था।”
लेकिन मगरमच्छ ने हाथी का पैर नहीं छोड़ा। हाथी दर्द से चीखने लगा। कुछ ही दूर पर एक पेड़ के नीचे एक भालू आराम कर रहा था। उसने हाथी की चीख सुनी, तो नदी किनारे आया।
हाथी को उस हालत में देख उसने पूछा, “ये क्या हुआ हाथी भाई?”
“इस धूर्त मगरमच्छ की मैंने सहायता की और इसने मुझ पर ही हमला कर दिया। मुझे बचाओ।” हाथी ने कराहते हुए मगमच्छ के पत्थर के नीचे दबे होने की सारी कहानी सुना दी।
“क्या कहा? ये मगरमच्छ पत्थर के नीचे दबा था और फिर भी ज़िन्दा था। मैं नहीं मानता।” भालू बोला।
“ऐसा ही था।” मगरमच्छ गुर्राया और अपनी पकड़ हाथी के पैरों पर मजबूत कर दी।
“हो नहीं सकता!” भालू फिर से बोला।
“ऐसा ही था भालू भाई!” हाथी बोला।
“बिना देखे तो मैं नहीं मानने वाला। मुझे दिखाओ तो ज़रा कि ये मगरमच्छ कैसे उस पत्थर के नीचे दबा था और उसके बाद भी ज़िन्दा था। हाथी भाई ज़रा इस मगरमच्छ की पीठ पर वो पत्थर तो रख देना। फिर उसे हटाकर दिखाना।” भालू बोला।
मगरमच्छ भी तैयार हो गया। वह हाथी का पैर छोड़कर नदी के किनारे चला गया। हाथी ने वह भारी पत्थर उसके ऊपर रख दिया।
मगरमच्छ भालू से बोला, “ये देखो! मैं ऐसे इस पत्थर के नीचे दबा था। अब यकीन आया तुम्हें। इसके बाद हाथी ने आकर पत्थर हटाया था। चलो हाथी अब पत्थर हटा दो।” मगरमच्छ बोला।
“नहीं हाथी भाई! ये मगरमच्छ मदद के काबिल नहीं है। इसे ऐसे ही पड़े रहने दो। आओ हम चले।” भालू बोला।
इसके बाद हाथी और भालू वहाँ से चले गए। मगरमच्छ वहीं पत्थर के नीचे दबा रहा। उसकी धूर्तता का फल उसे मिल चुका था।
Moral Of The Story/ कहानी की सीख
हमें हमेशा सहायता करने वाले के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।
बुद्धिमानी से किसी भी मुसीबत से निकला जा सकता है।